FREE FIRE INDIA
• Written by user210463957
"जब मैं उतरा battlefield में, आशिकी से अलग,
जिंदगी एक मजाक, game का रंग है आग।
मंज़िल की तरफ़ तनहा चला मैं,
जैसे फूल तोड़े, शाखों का सन्नाटा था काम।
हर पल यही सोचता, कैसे भूल जाऊँ तुझे,
यादों का सफ़र, एक नया game, क्या करूँ कुछ नए moves पे।
तुझी को सोचकर लिखता हूँ, जो भी लिखता हूँ,
अब लिख रहा हूँ तो फिर क्यूँ ना एक नया level लूँ।
इस सवाल से ग़म को बदल दूँ खुशियों में,
पर इन बेज़न सी खुशियों से क्या कमाल करूँ।
पर अब सवाल भी कमाल, तू संभाल, फिलहाल ये सवाल बिछा जाल क्या, मैं चाल चलूँ।
चाल चल तू अपनी, मैं तुझे पहचान लूँगा,गेम की महफ़िल में सिर्फ तेरा ही नाम लूँगा।तुझे पसंद है धीमा लहजा और बस ख़ामोशियाँ,मैं तेरे ख़ातिर अपनी खुद की सांसें थाम लूँगा।क्या तेरे सारे आंसू मेरे हो सकते हैं,ऐसा है तो तेरे ख़ातिर हम भी रो सकते हैं।तेरे ख़ातिर मेरे रोने पर अब तुम बस हंस देना,एक बार तेरी मुस्कुराहट के पीछे हम सब कुछ खो सकते हैं।
क्या मेरी मोहब्बतों का कोई हिसाब नहीं है,क्या तेरी आंखों में मेरे लिए कोई ख़्वाब नहीं है।"
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user210463957
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